1 और 2 टिमोथी और टाइटस
जब पौलुस अपने जीवन के अंतिम क्षणों की ओर अग्रसर हो रहा था तो उसने अपने आत्मिक “पुत्र” तीमुथियुस और तीतुस को लिखा। वयोवृद्ध प्रेरित, इन जवान सेवकों का उनके सेवा क्षेत्र, इफिसुस और क्रेते में, उत्साहवर्धन व मार्गदर्शन करना चाहता था। उसकी यह इच्छा थी कि वे प्रभु की कलीसिया में प्रभावकारी व फलदायी सेवा प्रदान करें और सच्चाई का प्रचार करना व झूठी शिक्षा का सामना करना न छोड़ें। उसने इस बात पर भी जोर दिया कि मसीही जीवन जीने के ये निर्देश परमेश्वर की प्रेरणा से हैं। पौलुस ने परमेश्वर द्वारा उस पर की गई दया पर भी जोर दिया और उसने इस बात पर भी चिंता व्यक्त किया कि भाई लोग भी सत्य की रक्षा कर उसका अभ्यास करें।
इन तीन पत्रियों पर कई वर्षों तक अध्ययन करने एंव शिक्षा प्रदान करने के द्वारा डेविड रोपर (David Roper) ने एक-एक आयत का सर्वोत्तम अध्ययन तैयार किया है। विश्लेषण एंव शब्दों का अध्ययन रोपर के विस्तृत लेखन कला के द्वारा प्रगट होता है।
परमेश्वर के संग-संग चलने के लिए, परमेश्वर के वचन के विद्यार्थी, इन पत्रियों का अध्ययन करने के लिए बार-बार इसकी ओर आकर्षित होंगे, जब वे पौलुस के संग विश्वास की अच्छी कुश्ती लड़ने के लिए तत्पर रहेंगे (देखें, 1 तीमुथियुस 6:12; 2 तीमुथियुस 4:7)।