एजरा, नहेमायाह, और एस्थर
बेबीलोन की सत्तर वर्ष की बंधुवाई के पश्चात, निर्वासित यहूदियों में से बचे हुए कुछ लोग परमेश्वर के मंदिर का पुनर्निर्माण करने के लिए यरूशलेम को गए। पवित्र देश में उसके लोगों के पुनःस्थापित होने के द्वारा अंततः मसीहा को भेजने का मार्ग तैयार हुआ।
एज्रा की पुस्तक ज़रूब्बाबेल की अगुवाई में इस लौटने और मंदिर को पूरा करने में यहूदियों के संघर्ष की कहानी बताती है। वह यह भी बताती है कि कैसे एज्रा शास्त्री और याजक ने बाद में व्यवस्था को सिखाया और परमेश्वर के लोगों को विश्वासयोग्यता की वाचा में आने का आह्वान किया।
यद्यपि मंदिर का पुनर्निर्माण हो चुका था, यरूशलेम की शहरपनाह अभी भी टूटी हुई थी और आक्रमण के समय शहर को हानि हो सकती थी। नहेम्याह की पुस्तक शहरपनाह के पुनर्निर्माण के लिए नहेम्याह के लौट कर आने को बताती है। उसे अपने लोगों की आत्मिक भलाई की भी चिंता थी क्योंकि उनकी परमेश्वर के साथ वाचा के नवीनीकरण के लिए अगुवाई की गई।
एस्तेर की पुस्तक बताती है कि निर्वासन के बाद के समय में यहूदी लोगों के अस्तित्व पर ही ख़तरा आ गया था। एक यहूदी युवती ईश्वरीय प्रावधान द्वारा फारसी साम्राज्य की रानी बन गई। उसके साहस के द्वारा, एक जघन्य षड्यंत्र को विफल किया गया और समस्त साम्राज्य में उसके लोगों के जीवनों को बचाया जा सका।