1 कोरिंथियंस
इस पत्री में पहली सदी केकुरिन्थियों के मसीहियों को, पौलुस ने कई प्रश्नों को थोड़े बदलाव के साथ सम्बोधित किए, जो आज भी कलीसिया के लिये समस्या का कारण है। फूट, अनैतिकता, सैद्धातिक भ्रम और सांसारिकता ने इस मण्डली को उलझन में डाल रखा था; और उनके क्लेश—घमण्ड—की एक जड़ अभी भी हमारे बीच में आम है। डूआन वार्डन की आयत-के बाद-आयत का अध्ययन बाइबिल आधारित पाठ में कठिन मुद्दों को हल करता है
और हमारे अपने समय में रहने वाले मसीहियों के लिये व्यावहारिक अनुप्रयोग को दर्शाता है। पौलुस जानता था कि सभा से सम्बन्धित क्लेशों पर नियन्त्रण पाने की कुंजी प्रेम है, “तरल से ठोस की ओर स्थानान्तरित कर दी जाती है।” अध्याय 13 में प्यार की अपनी सुविख्यात और परिचित चर्चा में प्रेरित ने इस विशेषता को परिभाषित और वर्णित किया है, जिसमें दिखाया गया है कि मसीह के पीछे चलनेवाला वही है जो सचमुच दूसरों के प्रति व्यवहार करने के लिये प्रेम से प्रेरित हुआ है। आज मसीही इस अनुच्छेद में सिखाए गए सिद्धान्तों का पालन करते हैं, कई समस्याएं हल हो जाएँगी और कलीसिया एक प्रेम रखनेवाला बन सकता है, एक देह हो सकता है जिसकी कल्पना यीशु ने की और उसे बचाने के लिये अपना जीवन दे दिया।